भाग 1: बाईबल के विषय में सीखना

मुख्य वचन

आह! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूँ!
दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।
तू अपनी आज्ञाओं में द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है,
क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं।
मैं अपने सब शिक्षकों से भे अधिक समझ रखता हूँ,
क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चुतौनियों पर लगा है।
मैं पुरनियों से भी समझदार हूँ, क्योंकि मैं तेरे उपदेशों को पकड़ें हुए हूँ।
मैंने अपने पांवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है,
जिससे मैं तेरे वचन के अनुसार चलूं।
मैं तेरे नियमों से नहीं हटा, क्योंकि तू ही ने मुझे शिक्षा दी है।
तेरे वचन मुझको कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुंह में मधु से भी मीठे हैं!
तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूँ, इसलिए मैं सब मिथ्या मार्गो से वैर रखता हूँ।
तेरे वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला हैं।
भजनसंहिता 119:97-105

बाईबल परिचय

इस अध्याय में हम बाईबल के महत्व और लाभ को देखेंगे। इसे लिखने में 1600 वर्ष का समय लगा, और 30 से अधिक लेखकों ने इसे लिखा। इसका अनुवाद सैंकड़ों भाषाओं में किया गया है। इसे जलाने और नष्ट करने और भिन-भिन रीति से अपमानित करने के अनेकों प्रयासों के बावजूद ये बाईबल आज भी दुनिया भर में बड़ी मात्रा में छापी और वितरित की जाने वाली पुस्तक है। परन्तु बाईबल कहां से आई और क्यों मसीही लोग इसे अद्भुत पुस्तक मानते हैं? इन प्रश्नों के उत्त्र बाईबल में ही पाए जाते हैं, इसे पवित्र शास्त्र भी कहते हैं और उन मसीही लोगों के हृदयों में, जिन्होंने ने इस की सामर्थ को अपने जीवन में जाना और अनुभव किया है।

बाईबल

1500 ईसा पूर्व

उत्पति,निर्गमन,लैव्यव्यवस्था गिनती,व्यवस्थाविवरण

मूसा द्वारा लिखित यह पुस्तकें संसार की रचना और परमेश्वर द्वारा इस्राएल कोअपने लोग होने के लिए चुनने के विषय में बताती है। वह उन्हें मिस्र में से बचा कर नये जीवन में ले आया। परन्तु उनके द्वारा आज्ञा की पालना ना करने के कारण उन्हें 40 वर्षों तक जंगलों में घूमाता रहा।

1000 ईसा पूर्व

यहोशू,न्यायियों,रूत 1-2 शमूएल 1-2 राजा 1-2इतिहास

इस्राएल द्वारा नये स्थान पर व्यव्यस्थिति होने की कहानी। पहले उनकी अगुवाई नबीयों द्वारा की गई फिर राजाओं द्वारा शाऊल और दाऊद सहित। परन्तु सभी राजा अच्छे नहीं थे। कुछ इस्राएलियों को पाप के मार्ग पर ले गए। परमेश्वर ने उन्हें उनके शत्रुओं के द्वारा दंड़ित किया।

एज्रा, नहेमयाह

परमेश्वर ने एज्रा और नहेमयाह को यरूशलेम के ढाहे जाने के बाद उसके के पुन:निर्माण के लिए इस्तेमाल किया।

एस्तेर,अय्यूब, भजनसंहिता, नीतिवचन, सभोपदेशक श्रेष्ठगीत

बाईबल में बहुत से गीत और कवितायें सम्मलित की गईं हैं। बहुत से भजन दाऊद के द्वारा लिखे गए हैं। सुलेमान, एक नेक राजा ने नीतिवचन लिखें हैं। आज भी हम इस अध्यायों में बहुत सा ज्ञान पा सकते हैं।

700 ईसा पूर्व

यशायाह,यिर्मयाह,विलापगीत, यहेजकेल,दानिय्येल,होशे,योएल, आमोस,ओबद्याह,योना,मीका,नहूम

नबियों द्वारा इस्राएलियों को चेतावनी दी गई कि यदि वह परमेश्वर की आज्ञाओं की पालना नहीं करेंगे तो वह उन्हें दंड देगा। प्राय:दंड यह होता था कि उन्हें अपनी भूमि गंवानी पड़ती थी।दानिय्येल जैसे मनुष्य बाबुल में बडे

400 ईसा पूर्व

हबक्कूक,सपन्याह,हाग्गै,जकर्याह मलाकी

हुए। परन्तु नबियों ने उन्हें यह भी पहले से बता दिया था कि उनकी भूमि उन्हें वापिस लौटा दी जाएगी और ऐसा हुआ भी।

30 ईसवी मती,मरकुस,लूका,यहूना प्रेरितों के काम

यीशु मसीह के जन्म की भविष्यवाणी पुराने नियम में की गई थी। वह 33 वर्षों तक इस पृथ्वी पर रहा और इस दौरान उनसे वो कार्य आरम्भ किया जो आज भी जारी है। उसके द्वारा किए गए अश्चर्यक्रमो को शिष्यों द्वारा प्रेरितों के काम की पुस्तक में भी जारी रखा गया।

60 ईसवी

रोमियो,1-2 कुरिन्थियों,गलातियों, इफिसियों,फिलिप्पियों,कुलुस्सियों 1-2 थिस्सलुनीकीयों, 1-2 तीमुथियुस तीतुस,फिलेमोन,इब्रानियों

पौलुस ने बहुत से पत्र लिखें, विशेषत: कलीसियाओं को। उसने प्रारम्भिक कलीसियाओं को परमेश्वर की बहुत सी सच्चाईयों और उसके उद्धार की शिक्षायें दी और कलीसियाओं में उठने वाले बहुत से प्रश्नों के उत्त्र देना का भी प्रयास किया। इसी कारण से आज के मसीहीयों के लिए पौलुस के पत्र बहुत मूल्यवान हैं।

90 ईसवी

याकूब, 1.2 पतरस, 2-3 यहूना प्रकाशितवाक्य

अन्य मसीही अगुवों ने भी पत्र लिखें हैं। वह हमें बताते हैं कि प्रारम्भिक कलीसिया के समय में जीवन कैसा था और प्रकाशितवाक्य हमें भविष्य के बारे में बताता है।

बाईबल परमेश्वर का वचन है

चाहे यह मनुष्यों के द्वारा लिखी गई, परन्तु यह परमेश्वर की योजना थी और स्वयं उसी के द्वारा दी गई है। पवित्र आत्मा ने विशेष रीति से लेखकों को प्रेरित किया, जब भी परमेश्वर ने अपने शब्दों को पृथ्वी के लोगों के भले के लिए दर्ज करना चाहा। 2 तीमुथीयुस और 2 पतरस के वचन हमारे लिए कोई संशय नहीं छोड़ते हैं कि हम केवल मनुष्य के विचार ही नहीं पढ़ रहे हैं। बाईबल हमें बताती है कि परमेश्वर क्या सोचता है और वह कौन है।

1 तीमुथियुस 3:16-17सारा पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिए लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो जाए।

2 पतरस 1:21क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्तजन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की और से बोलते थे।

बाईबल एक प्रेरणा युक्त पुस्तक है। ‘प्रेरणा’ का अर्थ है परमेश्वर ने यह निश्चित करने के लिए कि उसके शब्द हूबहू लिखें जाऐं,प्रत्येक लेखक पर अपना श्वास फूंका। यही मूसा के मामले में हुआ। उसने वही शब्द लिखे जो परमेश्वर ने उसे सीनै पर्वत पर कहे थे। उसे कोई शंका नहीं थी कि यह परमेश्वर के वचन और विचार हैं, उसके अपने नहीं।

निर्गमन 24:3-4तब मूसा ने लोगों के पास जाकर यहोवा की सब बातें और सब नियम सुना दिए; तब सब लोग एक स्वर में बोल उठे कि जितनी बातें यहोवा ने कहीं हैं उन सब बातों को हम सब मानेंगे।

निर्गमन 34:27-28और यहोवा ने मूसा से कहा, ये वचन लिख ले; क्योंकि इन्हीं वचनों के अनुसार मैं तेरे और इस्राएल के साथ वाचा बांधता हूँ....और उसने उन तख्तियों पर वाचा के वचन अर्थात दस आज्ञाएं लिख दीं।

बाईबल हमारे लिए परमेश्वर का उपहार हैं

2 तीमुथीयुस 3:16 देखें

2 तीमुथियुस 3:16-17सारा पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिए लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो जाए।

बाईबल उपदेश देने, और समझाने, और सुधारने, और धार्मिकता की शिक्षा के लिए लाभदायक है। यह हमारे लाभ के लिए लिखी गई और हमारे लिए परमेश्वर का उपहार है। इसलिए हमें इसका सम्मान करना चाहिए। बाईबल के बिना हमें इस बात का अनुमान नहीं था कि परमेश्वर कौन है और उसे किस प्रकार प्रसन करना है और उसे निजी रूप में जानने की हमें बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी। इस प्रकार बाईबल वो पुस्तक है जो हम पर महत्वपूर्ण सत्य प्रगट करती है।

1. यह परमेश्वर को हम पर प्रगट करती है

हम जो कुछ भी परमेश्वर के विषय में जानते हैं वो बाईबल के द्वारा ही है। यहूना 1:18 कहता है कि परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा, परन्तु बहुत बार पुरूषों और महिलाओं द्वारा अनुभव किए गए हैं जो उन पर परमेश्वर के विषय में कुछ सत्य प्रगट करते हैं परन्तु पवित्र शास्त्र के द्वारा ही उसका प्रगटीकरण पूरी तरह से किया गया है। हमें बाईबल देने के द्वारा परमेश्वर यह स्पष्ट करता है कि वो चाहता है कि हम उसे व्यक्तिगत रूप में जाने।

पृथ्वी पर अपनी सेवकाई के दौरान यीशु ने अकसर पुराने नियम के पवित्र शास्त्रों के हवाले दिए जो वह दावा करता था कि उसके विषय में और मसीह के रूप में उसके आने के विषय में बताते हैं। वो अपने प्रगटी करण के विषय में उन्हें मूसा और नबियों की किताबों में भी दिखता था।

लूका 24:27उसने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ करके सारे पवित्र शास्त्र में से अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया।

यहूना 5:39यह वो पवित्र शास्त्र हैं जो मेरे बारे मे साक्षी देते हैं।

जीवन से भी अधिक मूल्यवान

बाईबल का प्रकाशन 1000 से भी अद्दिक भाषाओं में किया गया है। विलियम टैंडल उन प्रारम्भिक अनुवादकों में से एक था जिसने साधारण मनुष्य की भाषा में बाईबल का अनुवाद किया था। इस कारण उसे सताव का सामना करना पड़ा और मजबूर होकर इंगलैंड से भाग कर विट्टनबर्ग, जर्मनी जाना पड़ा। वहां पर उसने नये नियम का अनुवाद युनानी भाषा से अंग्रेजी भाषा में किया। उसके द्वारा अनुवादित नये नियम की छपाई वॉर्मस नगर में की गई थी। जब इसकी प्रतियां इंगलैंड ले जाईं गईं तो किंग हैनरी अष्ठम द्वारा उन्हें नष्ट करने की आज्ञा दे दी गई। अंत: टेंडल को बैलजीयम के अँटवर्प में गिरफ्तार कर लिया गया। 16 महीने कैद में व्यतीत करने के बाद, उसे झूठ का प्रचार करने का दोषी बनाने की कोशिश की गई। 6 अगस्त 1536 को उसे खम्भे से बाँधकर जिंदा जला दिया गया।

बाईबल का सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद जौन वाईकल्फि द्वारा किया गया था। उसे ‘पुन: निर्माण का भोर का तारा’ कहा गया है। वाईकल्फि के बहुत से अनुयायीओं को स्टेक में जला दिया गया क्योंकि उनके पास अंग्रेजी बाईबल थी और वह उसे पढ़ते थे। वाईकल्फि की मृत्यु के पचास वर्ष बाद, उसकी कब्र को खोला गया और उसके शरीर को जला कर उसकी अस्थियों को एक झरने में बहा दिया गया।

बहुत से मसीही लोगों की हत्या बाईबल के प्रति उनके प्रेम के कारण कर दी गई। बहुत वर्षों तक समाजवादी देशों में यह एक नफरत योग्य पुस्तक बनी रही ।परन्तु आज यह उनमें से कुछ देशों में बड़ी संख्या में छापी और भेजी जा रहीं हैं: परमेश्वर का वचन सदैव अटल रहेगा (यशायाह 40:8)

पिता, तेरे वचन के लिए धन्यावाद। पूरे हृदय और नम्रता से इसे पढ़ने में मेरी सहायता कर। स्मरण रहे कि बहुत से लोगों ने इसलिए अपनी जान दी कि तेरा वचन पुरूषों और स्त्रियों तक पहुँचे। मुझे हमेशा आज्ञाकारी आत्मा देता कि तेरा सत्य मेरे जीवन और सेवकाई में फलदायक हो।

श. यह हम पर उद्धार का मार्ग प्रगट करता है

केवल बाईबल के द्वारा ही हम जान सकते हैं कि परमेश्वर के साथ सम्बंध कैसे बनाया जा सकता है, पापों की क्षमा के द्वारा। तीमुथियुस को लिखे पत्र में पौलुस याद दिलाता है कि कैसे तीमुथियुस ने उस निष्ठावान विश्वास को प्राप्त किया जो पहले उसकी नानी और फिर उसकी मां के पास था। परन्तु उसने यह विश्वास अपने लिए कैसे हासिल किया? बालपन से ही बाईबल को पढ़ते और सुनने के द्वारा।

2 तीमुथियुस 3:15“....और बाल्यपन/छोटी आयु से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिए बुद्धिमान बना सकता है...’’

ग. मसीही के रूप में बढ़ने में हमारी सहायता करता है

यही वचन जो हमें बताता है कि पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से प्रेरित है हमें बताता है कि हम कैसे इस से लाभांवित हो सकते हैं।

2 तीमुथियुस 3:16सारा पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धार्मिकता की शिक्षा के लिए लाभदायक है।

पौलुस चार कारणों की सूची बनाता है कि क्यों मसीही लोगों को बाईबल का अध्ययन बहुत गहनता से करना चाहिए।

पवित्र शास्त्र हमें परमेश्वर के सत्य को जानने की शिक्षा देता है।

पवित्र शास्त्र हमें चुनौती देता है जब हम जानते हुए गलत काम करते हैं।

पवित्र शास्त्र व्यवहार सुधारने में हमारी सहायता करता है।

पवित्र शास्त्र हमें परमेश्वर के मार्गों पर चलने का प्रशीक्षण देता है।

इसका परिणाम है, कि हम परमेश्वर के लिए उपयोगी बने और सेवकाई का कार्य करने के लिए तैयार रहें।

2 तीमुथियुस 3:17ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो जाए।

तो बाईबल मसीही लोगों के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। इसकी शिक्षाओं के प्रति हमारा व्यवहार ही यह निश्चित करेगा कि हम कितने दृड़ मसीही बने हैं।

बाईबल का अधिकार

हम पहले ही देश चुके हैं कि बाईबल कितनी अदभुत पुस्तक है। केवल बाईबल में ही परमेश्वर के प्रेरित शब्द हैं। बाईबल के विषय में बहुत सी शानदार पुस्तकें लिखी गईं हैं और हो सकता है कि वह इसे अच्छे से समझने में सहायता कर सकती हों। परन्तु उन्हें इसके समान अधिकार नहीं है। पवित्र शास्त्र से लाभ प्राप्त करने के लिए हमें स्वयं को उसके समर्पित करना अवश्य है। बाईबल की आज्ञाओं का पालन करना, विश्वास करना और वही करना जो यह कहती है, उसी समान है जैसे परमेश्वर की आज्ञा पालन करना है। क्योंकि इसमें परमेश्वर के ही वचन लिखें हैं।

सारी शिक्षाओ की जांच पवित्र शास्त्र के द्वारा की जानी चाहिए

सदियों से बहुत से झूठे उपदेशक होते रहे हैं। परमेश्वर का वचन बताता है कि ऐसा मसीह के पुन:आगमन से पहले के दिनों में अवश्य होगा। मसीही लोगों के लिए अपनी सुरक्षा करना आवश्यक है, और शैतान द्वारा प्रेरित, झूठी शिक्षा से चौकस रहना, जिसका, उद्देश्य लोगों को दुविधा में डालना और विभाजित करना है।

1 तीमुथियुस 4:1-2...आने वाले समयों में कितने लोग भरमाने वाली आत्माओं, और दुष्ट आत्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएंगे।

एक अदभुत पुस्तक

‘यह बाईबल ही है जिसने हमें इतनी सदियों से जीवित रहा है, और बाईबल ही है जो भविष्य में हमारे जिन्दा रहने की आशा बनाए रहती है।’ डेविड बेन गुरीअन, इस्राएल के प्रथम प्रधानमंत्री

यह 66 पुस्तकें हैं फिर भी एक ही पुस्तक है। इसके बहुत से लेखक है फिर भी एक ही लेखक है। यह संसार की सबसे पुरानी पुस्तक है फिर भी आने वाले कल के समाचार पत्र से अधिक पूरी और नई है।’ आथर्र वैलिस, लेखक और मसीही अध्यापक

‘केवल एक ही पुस्तक है- बाईबल ।’ सर वालटर स्कॉट, उपन्यासकार

‘बाईबल और इसके पवित्र सत्य के प्रति मेरा प्रेम नब्बे वर्ष की आयु में भी उनिस वर्ष की आयु से अधिक दृढ़ है।’ फैनी क्रोस्बी, भजनकार

‘मैं पवित्रशास्त्र को बुजुर्गों, दूतों, पुरूषों और दुष्टों की बातों से ऊँचे स्थान पर रहता हूँ। यहां मैं अपनी बात पर दृढ़ हूँ।’ मार्टिन लूथर, जर्मन के मसीही सुद्दार आंदोलन का अगुवा

‘बाईबल आशा की खिड़की है, जिसके द्वारा हम अनन्तता में देखते हैं ।’ तिमोथी व्हाईट

‘मैं जानता हूँ कि परमेश्वर के वचन पर्याप्त हैं। उसका एक वचन देश को बदल सकता है। उसका वचन अनन्त से लेकर अनन्त तक है। यह विश्वास के लिए भोजन है।’ स्मिथ विग्गलसवथर्, सुसमाचार प्रचारक

‘बाईबल के लिए परमेश्वर के प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए, उसे किसी अच्छे डिब्बे में संभाल कर रहना, या अपनी बुकशैल्फ पर सम्मानित स्थान देना नहीं है, या सौभाग्य चिन्ह हेतु अपने साथ रहना नहीं है । बाईबल आपके लिए तब तक कुछ नहीं करेगी जब तक कि आप उसके सत्य को अपने हृदय में स्वीकार नहीं करते और उसे आपको पूर्ण रीति से बदलने का अवसर प्रदान नहीं करते हैं।’ आथर्र वालिस

पौलुस इफिसुस की कलीसिया को लिखने के योग्य था कि उसने उन्हें परमेश्वर की सम्पूर्ण इच्छा के विषय में सिखाया है। उसने कलीसिया को उन झूठे उपदेशों के विषय में भी चेतावनी दी जिन्हें ‘फाड़ने वाले भेड़िए’ कहा गया है, उसके जाने के बाद आएंगे और कलीसिया को नष्ट करने का प्रयास करेंगे।

प्रेरितों के काम 20:27-30पौलुस इफिसुस की कलीसिया को लिखने के योग्य था कि उसने उन्हें परमेश्वर की सम्पूर्ण इच्छा के विषय में सिखाया है। उसने कलीसिया को उन झूठे उपदेशों के विषय में भी चेतावनी दी जिन्हें ‘फाड़ने वाले भेड़िए’ कहा गया है, उसके जाने के बाद आएंगे और कलीसिया को नष्ट करने का प्रयास करेंगे। क्योंकि मैं परमेश्वर की सारी मनसा को तुम्हें पूरी रीति से बताने में न झिझका....मैं जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद फाडने वाले भेड़िए तुम में आएंगे, जो झुण्ड को न छोड़ेंगे। तुम्हारे ही बीच में से ऐसे ऐसे मनुष्य उठेंगे, जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने की टेड़ीमेढ़ी बातें कहेंगे।

इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि पौलुस तीमुथियुस के ‘सत्य के वचन’ के प्रति उचित रीति से काम में लेने के महत्व की शिक्षा देता है। (2 तीमुथियुस 2:15) क्योंकि बाईबल 2-4000 वर्ष पूर्व लिखी गई थी, इसे समझना चाहिए। कुछ पदों के मायने 20वीं सदी के अनुरूप नहीं हो सकते जैसे कि वह पहिले की सदियों में हुआ करते थे। बहुत से प्रशन और परिस्थितियां जो आज उत्पन हुईं हैं, उनका समाधान पवित्र शास्त्र में सीधे-सीधे नहीं मिलता है।

2 तीमुथियुस 2:15अपने काम को परमेश्वर का ग्रहण योग्य और ऐसा काम करने वाला ठहराने का प्रयत्न करो जो लज्जित न हो पाये,और जो सत्य के वचन को उचित रीति से काम में लाता हो।

इसलिए पवित्रशास्त्रों का अनुवाद किया जाना चाहिए। ऐसा करते हुए स्वयं से प्रश्न करें,

1. क्या शिक्षा को एक से अधिक बार दोहराया गया है? अपने ज्ञान में परमेश्वर ने इस बात को सुनिश्चित किया है किस भी मुख्य सत्यों को दोहराया जाए। कभी-कभी बार-बार ताकि हम उन्हें छोड़ न सकें। उदाहरण के लिए, पुराने नियम में भी विश्वास के महत्व को देशा जा सकता है।

2. क्या यह शिक्षा शेष पवित्र शास्त्र में सही बैठती है? परमेश्वर हमें दुविधा में नहीं छोड़ता और पवित्र आत्मा जिसके विषय में यीशु कहता है कि वो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा (यहूना 16:13),कभी भी पवित्र शास्त्र के विरूद्ध नहीं बोलेगा,जो स्वयं में परमेश्वर का वचन है। प्रत्येक अवसर पर परमेश्वर के पवित्र शास्त्र का अनुवाद किया और उसे समझा जा सकता है; अन्य वचनों का अध्ययन करते हुए-यदि हम उन्हें ठीक रीति से काम में लायें।

यहूना 16:13परन्तु जब वह अर्थात सत्य का आत्मा आएगा,तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा,क्योंकि वह अपनी और से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा,वही कहेगा और आने वाली बातें तुम्हें बताएगा।’’

3. क्या हमारा पवित्र शास्त्र का अनुवाद सही है? बाईबल का अनुवाद मनुष्यों का काम है, निस्संदेह पवित्र आत्मा बहुत से मामलों में सहायता करता है,परन्तु कुछ स्थानों पर अनुवाद गलत हो सकता है जो अर्थ बदल सकता है।

4. क्या किसी व्यक्ति द्वारा अपने चेले बनाने के लिए शिक्षा का प्रयोग किया गया है? ऐसा नये नियम के समय में अकसर होता रहा है और आज भी हो रहा है।

श. हमारे जीवनों की जांच परमेश्वर के वचन द्वारा अवश्य की जानी चाहिए

परमेश्वर के वचन और विचार प्रत्येक पीढ़ी और पृथ्वी के प्रत्येक राज्य के लिए उपयुक्त है। यह हमारे परमेश्वर के मार्ग पर चलने की चुनौती देते हैं, न कि हमारे अपने मार्गों पर। हमारे पर छोड़ने पर हम स्वयं को प्रसथ करने के लिए जीने लगते हैं जिसे बाईबल मृत्यु का मार्ग बताती है। दूसरी तरफ, परमेश्वर का मार्ग जीवन की और ले जाता है। केवल परमेश्वर के वचन को हमारे जीवन में शासन करने की अनुमति देने से, हम परमेश्वर के जीवन के मार्ग को खोज सकते हैं।

हम बाईबल को पढ़ते और उसका अध्ययन करते हैं, हमें दो जरूरी बातों की आवश्यकता है: नम्रता और विश्वास। पहले के बिना हम परमेश्वर की डांट और सुधार को कठिन पायेंगे। हमें इस विश्वास की जरूरत होगी कि बाईबल ही परमेश्वर का वचन है और वो जानता है कि हमारे लिए क्या उत्त्म है। परमेश्वर की आज्ञाएं सदा हमारे लिए भले की ही हैं।

बाईबल मसीही सेवा के लिए एक उपकरण है

अब तक हम ने देखा है कि बाईबल एक मार्गदर्शिका पुस्तक है, हमें परमेश्वर की ओर ले जाती है, और एक नियम की पुस्तक है, हमें योग्य बनाती है कि हम उस रीति से जीयें जैसा परमेश्वर चाहता है कि पुरूष और स्त्रियां जीयें। परन्तु यह इससे कहीं बढ़कर है। जैसे यीशु ने दिखाया, जब उजाड़ में शैतान द्वारा उसकी परीक्षा ली गई थी। चालीस दिन उपवास के साथ व्यतीत करने के बाद,यीशु भूखा था, शायद अकेला भी और शैतान के आक्रमण के लिए अवसर था। तीन अवसरों पर शैतान ने यीशु को उकसाने का प्रयास किया कि वो उसकी आज्ञा का पालन करे न कि परमेश्वर की। हर बार यीशु ने शैतान को उत्त्र देने के लिए पवित्र शास्त्र का प्रयोग किया और उसे चुप करवा दिया। यीशु हमें दिखाता है कि हमारे जीवन में शैतान पर विजय पाने के लिए पवित्र शास्त्र का प्रयोग करें जैसा उसने स्वयं किया था।

मती अध्याय 4 के उन पदों को पढ़ें जो यीशु की परीक्षा में विषय में बताते हैं। विशेष ध्यान दें, जब यीशु को मंदिर से अपने आपको नीचे गिरा देने की चुनौति दी गई, वहां पर शैतान ने स्वयं पवित्र शास्त्र का प्रयोग किया। यीशु जानता था कि शैतान उसके साथ चालाकी कर रहा है कि मैं अपने बचाव के लिए परमेश्वर को मजबूर करूं। परन्तु यीशु ने हालात को पूरी तरह उलट दिया। इस प्रकार हार ने वाला शैतान था।

मती 4:3-4‘‘तब परखने वाले ने पास आकर उससे कहा, यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो कह दे कि यह पत्थर रोटियां बन जाएं। उसने उतर दिया कि लिखा है कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।’’

मती 4:6-7‘‘और उससे कहा, यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो अपने आप को नीचे गिरा दे; क्योंकि लिखा है कि वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा और वह तुझे हाथों हाथ उठालेंगे; कहीं ऐसा न हो कि तेरे पावों में पत्थर से ठेस लगे। यीशु से उस से कहा, यह भी लिखा है कि तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।’’

मती 4:9-10‘‘उससे कहा, यदि तू गिर कर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूंगा। तब यीशु ने उससे कहा; हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है कि तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।

आज भी शैतान मसीही लोगों को उकसा रहा है कि वह उसके अनुसार काम करें न कि परमेश्वर के मार्ग अनुसार। बाईबल इसे परीक्षा कहती है। यीशु की तरह हमें भी परीक्षा पर विजयी होने के लिए बाईबल का प्रयोग उपकरण के रूप मे करना चाहिए। शैतान प्राय:ध्रुत होता है। उदाहरण के लिए, यीशु ने अपने चेलों से कहा कि यदि वो ज़हरीले सांप भी अपने हाथों में उठा लें, या ज़हर भी पी लें, वह उन्हें हानि नहीं पहुँचाएगा। परन्तु हमें परमेश्वर के वायदों की सच्चाई जानने के लिए ऐसा नहीं करना चाहिए। यह परमेश्वर को परीक्षा में डालना है। जिसे करने से यीशु ने इंकार कर दिया था। हमें यह विश्वास करना है कि परमेश्वर के वायदे सच्चे हैं क्योंकि वह उसके सच्चे वचन है न कि इसलिए कि हमने उन्हें निजि रूप में परखा हुआ है।

मरकुस 16:18‘‘वे अपने हांथों ये सांपों को उठालेंगे, और यदि वे नाशक वस्तु भी पी जाएं तौभी उनकी कुछ हानि न होगी, वे बीमारों पर हाथ रखेंगे और वह चंगे हो जाएंगे।’’

बाईबल जीवन बदलने वाली पुस्तक है

यीशु ने कहा जो बातें उसने कहीं वो ‘आत्मा’ और‘ जीवन’ हैं। (यहूना 6:63) इससे उसका तात्पर्य यह था कि उसके शब्द उन लोगों के हृदयों को छेदने वाले हैं जो उसकी सुनते हैं, जो विश्वास करते हैं उन्हें जीवन देते हैं।

यहूना 6:63-64‘‘आत्मा तो जीवन दायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं: जो बातें मैंने तुम से कहीं वो आत्मा हैं, और जीवन भी हैं। परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते।’’

बाईबल केवल इतिहास की पुस्तक नहीं है न ही यह मुर्दा, बेजान पुस्तक है। यह परमेश्वर के विचारों का संग्रह है,जिसे जब नम्रता सहित विश्वास के साथ स्वीकार किया जाता है,तो यह व्यक्ति के जीवन को बदलने की सामर्थ रखती है। उनकी आवश्यकताओं को पूरा करती है और उन्हें परमेश्वर के मार्ग पर ले चलती है।

यह घटना पिन्तेकुस्त के दिन घटी, जैसा कि प्रेरितों के काम में दर्ज हैं, यदि आपके पास बाईबल है तो पतरस द्वारा लोगों को दिया गया उपदेश पढ़ें (प्रेरितों के काम 2:14-42) लगभग आधे वचन पुराने नियम में से लिए गए हैं-योएल और भजनसंहिता से। इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों के हृदय छिद गए। (प्रेरितों के काम 2:37) और 3000 लोग विश्वासी बन गए। गैर मसीही लोगों को पवित्र शास्त्र सुनाना ही प्रचार करना है। जैसे कि विश्वासी लोग अन्य लोगों में सुसमाचार का बीजारोपण करना चाहते हैं, परमेश्वर भरोसा दिलाता है कि इसका बड़ा प्रतिफल मिलेगा। यशायाह 55:11 में दिया गया उसका वायदा हमारे लिए भरोसा है। निम्नलिखित को पढें और देशें कि परमेश्वर के वचन का वर्णन कैसे किया गया है। तब इसे सम्र्पण और विश्वास के भाव से प्रतिदिन पढ़ने का मन बनायें।

प्रेरितों के काम 2:16-17‘‘यह वो बात है जो योएल भविष्यद्वक्ता के द्वारा कही गई। कि परमेश्वर कहता है कि अन्त के दिनों में ऐसा होगा....कि मैं अपनाआत्मा सब मनुष्यों पर उंडेलूंगा।’’

‘‘क्योंकि दाऊद उसके विषय में कहता है कि मैं प्रभु को सर्वदा अपने साम्हने देखता रहा क्योंकि वह मेरी दाहिनी ओर हैं”(प्रेरितों के काम 2:25)

प्रेरितों के काम 2:34-35‘‘क्योंकि दाऊद तो स्वर्ग नहीं चढ़ा; परन्तु वो आप कहता है कि प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा मेरे दाहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवों तले की चौंकी न कर दूं।’’

‘‘तब सुननेवालों के हृदय छिद गए और वे पतरस और शेष प्रेरितों से पूछने लगे कि हे भाईयो, हम क्या करें?’’ (प्रेरितों के काम 2:37)

यशायाह 55:11‘‘उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहर कर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा से है उसे वह पूरा करेगा और जिस काम के लिए मैंने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।’’

परमेश्वर के वचन की परिभाषा के सात ढंग

“तेरे वचन मेरे पांव के लिये दीपक और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है ।" (भजन संहिता 119:105).

“यहोवा की यह भी वाणी है कि क्या मेरा वचन आग सा नहीं है? फिर क्या वह ऐसा हथौड़ा नहीं है जो पत्थर को फोड़ डाले?”(यिर्मयाह 23:29).

“क्योंकि जो कोई वचन को सुनने वाला हो, और उस पर चलने वाला न हो, तो वो उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है। इसलिए कि वह अपने आपको देखकर चला जाता है, और तुरंत भूल जाता है कि मैं कैसा था।" (याकूब 1:23-24).

“क्योंकि परमेश्वर का वचन जीवित और प्रबल और हर एक दोह्धारी तलवार से भी बहुत चर्चा है...” (इब्रानियों 4:12).

“क्योंकि तुम ने नाशवान नहीं पर अविनाशी बीज से परमेश्वर के जीवित और सदा ठहरने वाले वचन के द्वारा नया जन्म पाया है।" (1 पतरस 1:23).

“नये जन्मे हुए बच्चों की नाई निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिए बढ़ते जाओ।" (1 पतरस 2:2).

पढ़ें अगले अनुभाग